Zafar Siddiqui

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हो साफ ज़हन

ग़ज़ल ۔۔

हो साफ़ ज़हन सुकूँ फिर कहाँ नहीं मिलता,
दुआ हो दिल से तो क्या कुछ मियां नही मिलता!

जिधर से गुजरे दिखाई पड़ी उधर नफरत,
मुहोब्बतों का कोई अब जहां नहीं मिलता!

अदब के हम हैं मुहाफिज इसी सबब देखो 
 कोई भी शख्स यहां बद  ज़ुबाँ नही मिलता!

वो चाहते हैं जमी से ही आसमां छू लें,
उड़े बगैर मगर आसमां नही मिलता!

मैं कैसे मान लूँ सच्चों की ये भी बस्ती है,
मुझे यहां तो कोई हक बयां नही मिलता!

 हयात अपनी फ़क़त  उलझनों में डूबी है,
सुकून मुझ को जफर अब यहां नही मिलता!

  जफर सिद्दीकी,लखनऊ
   २८/०५/२०२२

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# लेखनी
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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

29-May-2022 11:10 PM

बेहतरीन रचना

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Shrishti pandey

29-May-2022 05:13 PM

Nice

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Raziya bano

29-May-2022 09:07 AM

शानदार प्रस्तुति

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